मध्यप्रदेश में लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस की रणनीति तैयार, क्या इस बार होगी असरदार?

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Harish Divekar
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मध्यप्रदेश में लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस की रणनीति तैयार, क्या इस बार होगी असरदार?

BHOPAL. राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह के बाद बीजेपी और पीएम नरेंद्र मोदी के पक्ष में बने माहौल के बीच कांग्रेस ने मध्यप्रदेश में दर्जनभर सीटें जीतने का टारगेट रखा है। दर्जनभर यानी आसान भाषा में कहें तो कम से कम 12 सीटें जीतने का टारगेट तय किया है। उस कांग्रेस ने ये लक्ष्य रखा है जो पुलवामा और एयरस्ट्राइक के बाद मोदी की आंधी में अपनी परंपरागत सीटें तक नहीं बचा सकी थी। मध्यप्रदेश में लोकसभा चुनाव में बढ़त हासिल करना कांग्रेस के लिए मुश्किल जरूर हो सकता है, लेकिन उसे नामुमकिन नहीं कहा जा सकता। हालांकि, राम मंदिर की ओर से चल रही चुनावी फिजाएं जरूर बीजेपी के रुख में नजर आ रही हैं। उस पर मोदी की गारंटी भी कांग्रेस पर भारी है, लेकिन कांग्रेस की अगली चाल ये तय करेगी कि कांग्रेस उन हवा को अपने फेवर में कैसे लेकर आती है। एक मशहूर शायर का उम्मीद और हौसलों से भरा एक फेमस शेर है।

अभी तो जाग रहे हैं चराग राहों के

अभी है दूर सहर, थोड़ी दूर साथ चलो

कांग्रेस ने इस बार एग्रेसिव रहने का फैसला किया है

बस कांग्रेस को भी यही तो करना है थोड़ी दूर और सबको साथ चलना है, साथ लड़ना है। जंग-ए-मैदान में ये लड़ाई कैसी होगी फिलहाल कहा नहीं जा सकता, लेकिन अपनी ओर से कांग्रेस ने तैयारी जरूर शुरू कर दी है। मध्यप्रदेश की कांग्रेस अब नई है अब जवान है। नया जोश है और यही जोश मोदी की आंधी के खिलाफ डट कर खड़े होने का हौसला भी दे रहा है। जोश से लबरेज नई कांग्रेस ने अब टारगेट थोड़ा बड़ा रखा है और उस टारगेट को हासिल करने के लिए थोड़ा एग्रेसिव रहने का फैसला किया है। कांग्रेस की कोशिश है कि भाजपा को हर उस मुद्दे पर घेरे जो विधानसभा मे उसे बंपर जीत दिलाने में कामयाब रहे। इसके लिए कांग्रेस के रणनीतिकार भाजपा के संकल्प पत्र की घोषणाओं पर नजर रखे हुए है। चुनावी मैदान में उतरने से पहले कांग्रेस संकल्प पत्र की अधूरी घोषणाओं की सूची बनाने की तैयारी में है। ये काम पूरा होते ही मतदाता तक जाने की तैयारी होगी। कांग्रेस की प्लानिंग है कि भाजपा पर वादाखिलाफी का आरोप लगाकर उसे जनता के बीच घेरा जाए।

कांग्रेस, बीजेपी की कमियां ढूंढने में जुटी

विधानसभा चुनाव में हार होने के बाद कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव की तैयारी तो शुरू कर दी है, लेकिन बीजेपी के खिलाफ फिलहाल ऐसा कोई मुद्दा नहीं है। जिस पर कांग्रेस दमदार स्टैंड ले सके और लोगों के बीच जा सके। बचाखुचा कुछ है तो बस वो घोषणाएं और वादे, जिनके जरिएब बीजेपी सत्ता पर काबिज हुई। अब कांग्रेस उसी में खामियां और बीजेपी की कमियां ढूंढने में जुट गई है। बीजेपी ने अपने संकल्प पत्र में कौन-कौन से वादे किए और उन्हें पूरा करने के लिए क्या-क्या कदम उठा रही है या नहीं उठा रही है। इस पर कांग्रेस की पूरी चुनावी प्लानिंग टिकी हुई है।

कांग्रेस होमवर्क के साथ उतरने की कोशिश में

कांग्रेस की प्लानिंग का पहला चरण है आक्रमक रुख अख्तियार करना। वैसे विधानसभा चुनाव में जबरदस्त हार के बाद कांग्रेस बहुत खामोश दिख रही है, जबकि जीतू पटवारी खुद एक एग्रेसिव नेता की पहचान रखते हैं। उनकी ये पहचान बहुत जल्द नुमाया हो सकती है। लोकसभा की चुनावी मैदान में कूदने से पहले कांग्रेस एग्रेशन का चोला पहनेगी और फिर छलांग लगाएगी। इस रुख को अख्तियार करने के बाद अगला चरण होगा सरकार पर हर वादे और योजना को पूरा करने का दबाव बनाना। हालांकि, कांग्रेस इस मामले में बिलकुल जल्दबाजी के मूड में नहीं है। पार्टी की कोशिश है कि उसका होमवर्क पूरा हो। क्योंकि डर ये भी है कि एग्रेशन के चक्कर में कहीं सोशल मीडिया पर मीम मटेरियल बनकर ही न रह जाए। मजाक बनने से बेहतर है तैयारी पक्की करके दुश्मन पर वार करना। कांग्रेस इसी चाल पर काम कर रही है।

कांग्रेस के पास किसानों से जुड़ा धान खरीदी का मुद्दा

इस समय सरकार को घेरने के लिए कांग्रेस के पास किसानों से जुड़ा धान खरीदी का मुद्दा है। याद दिला दूं कि बीजेपी ने संकल्प पत्र में धान खरीदी 3100 रुपए प्रति क्विंटल करने की घोषणा की है, लेकिन सरकार धान खरीदी पर किसानों को 2183 रुपए प्रति क्विंटल का भुगतान कर रही है। इससे धान बेचने वाले किसानों को 917 रुपए प्रति क्विंटल का नुकसान हो रहा है। कांग्रेस ने लाखों किसानों से जुड़े इस मुद्दे पर फिलहाल चुप्पी साध रखी है। धान खरीदी के अलावा लाड़ली बहना योजना भी कांग्रेस के लिए धारदार हथियार साबित हो सकती है। उस वक्त प्रदेश के सीएम रहे शिवराज सिंह चौहान ने योजना की राशि एक हजार से बढ़ाकर 3 हजार रुपए करने की घोषणा बार-बार की थी, लेकिन योजना में सिर्फ एक बार 250 रु. का इजाफा किया गया। राशि बढ़कर 1250 हो गई। लेकिन इसके बाद इसमें इजाफे के कोई आसार नहीं दिख रहे हैं। ये योजना इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि बीजेपी की बंपर जीत में इसे भी एक बड़ा फैक्टर माना गया। हालांकि, शिवराज की फ्लैगशिप योजना होने की वजह से इस ज्यादा हवा नहीं दी गई। लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि लाड़ली बहना योजना नहीं होती तो शायद कांग्रेस की महिला हितैषी योजनाएं बीजेपी पर भारी पड़ सकती थीं।

बीजेपी की घोषणाओं पर घेरने की तैयारी में कांग्रेस

इनके अलावा संकल्प पत्र की जो अन्य प्रमुख घोषणाएं कांग्रेस का चुनावी मुद्दा बनेगी उनमें सभी परिवार को मुफ्त राशन के साथ रियायती दर पर दाल, सरसों का तेल और चीनी उपलब्ध कराना। लाड़ली बहनों को मासिक आर्थिक सहायता के साथ पक्का मकान देना। उज्ज्वला और लाड़ली बहनों को 450 रुपए में गैस सिलेंडर देना। किसानों से 2700 रुपए प्रति क्विंटल गेहूं और 3100 रुपए प्रति क्विंटल धान की खरीदी करना। हर परिवार में कम से कम एक रोजगार या स्वरोजगार के अवसर मुहैया कराना। गरीब परिवार की छात्राओं को केजी से पीजी तक और छात्रों को 12वीं कक्षा तक मुफ्त शिक्षा देना। जनजातीय समुदाय के सशक्तिकरण के लिए 3 लाख करोड़ रुपए, सरकारी स्कूल में मिड-डे मील के साथ पौष्टिक नाश्ता देना। हर संभाग में आईआईटी की तर्ज पर मप्र इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी और एम्स की तर्ज पर मप्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस स्थापित करना भी शामिल है। इन सब मुद्दों पर बीजेपी कितना अमल करती है, कांग्रेस उस पर नजर रखते हुए उसे घेरने की तैयारी में है। लेकिन ये काम इतना आसान नहीं है। बीजेपी की सरकार बने अभी पूरे तीन महीने भी नहीं हुए हैं। ऐसे में जनता कांग्रेस की दलीलों पर कितना ध्यान देगी ये भी देखना होगा। लेकिन इससे भी बड़ी मुश्किल बन गया है राम मंदिर। जिसकी कोई काट कांग्रेस के पास नजर नहीं आती। राम के नाम पर किसी भी मंदिर में पूजा पाठ या हनुमान चालीसा का पाठ भक्तों को रास नहीं आया है। मतदाता किसी एक ओर कांग्रेस को देखना चाहते हैं। मुश्किल ये है कि सॉफ्ट हिंदुत्व से मतदाताओं के रुख में कोई नर्मी नहीं आई और हार्ड हिंदुत्व अब बीजेपी के नाम पेटेंट हो चुका है।

बीजेपी के अधूरे वादे पर घेरने की कांग्रेस की रणनीति कितनी कारगर रहेगी

ये तय है कि चुनाव तक राजनीति अयोध्या और राम मंदिर के इर्द-गिर्द घूमेगी। कांग्रेस के पास लोकसभा चुनाव में राम मंदिर मुद्दे की कोई काट नहीं है। कांग्रेस जनता को ये यकीन दिलाने पर तुली है कि बीजेपी ने चुनावी वादे पूरे नहीं किए और उधर पूरी जनता राम मय हो चुकी है। ऐसे में अधूरे वादों पर चुनावी बुनियाद मजबूत करने की रणनीति कांग्रेस के लिए कितनी कारगर साबित होगी ये देखना दिलचस्प होगा। क्योंकि अब रामजी ही चुनावी बेड़ा पार करेंगे, ये आशीष कांग्रेस को मिल पाता है या नहीं कहना मुश्किल है।

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